Wednesday, May 6, 2009

बे-मौसम की बरसात में


बे-मौसम की बरसात में

झूम उठा रौशनी में नहाया शहर

शहर के बाशिंदों को

कब से था इंतज़ार

ऐसी ही किसी सुहानी शाम का,


उधर शहर के निकटवर्ती गाँवों में

बरबाद हो गई

गेहूँ की पकी पकाई फसल

बे-मौसम की बरसात ने

धो डाला साल भर के संतोष का स्वप्न।

4 comments:

Vinay said...

बहुत संवेदनशील रचना है

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चाँद, बादल और शाम

Udan Tashtari said...

रचना पसंद आई!

नवनीत नीरव said...

Mere mann ko chho gayi ye rachana..kam shabdon mein bahut hi marmik baat kahi hai aapne.
Navnit Nirav

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रचना है ..