Sunday, July 27, 2008

नौकरी


ज़िन्दगी के मायने में
इस तरह घुस गई है
कि इसके होने से मेरा होना तय है
नहीं तो सब बेबात है!
ये करती है तय
कि तुम्हें कितना आदर मिलना चाहिए
मेरे सम्मान का सूचक है
नौकरी!

न तो मेरी जेब भारी है
न ही मेरी ज़बान जानती है
कैसे करते हैं चापलूसी,
फिर कैसे मिलेगी नौकरी!
जबकि मेरी औकात है
मामूली-सी!

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सही लिखा है-


ज़िन्दगी के मायने में
इस तरह घुस गई है
कि इसके होने से मेरा होना तय है
नहीं तो सब बेबात है!
ये करती है तय
कि तुम्हें कितना आदर मिलना चाहिए
मेरे सम्मान का सूचक है
नौकरी!




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नीरज गोस्वामी said...

न तो मेरी जेब भारी है
न ही मेरी ज़बान जानती है
कैसे करते हैं चापलूसी,
फिर कैसे मिलेगी नौकरी!
मुश्किल सवाल....लेकिन मिलेगी क्यूँ की बहुत से ऐसे हैं जिनके गुण-अवगुण आप जैसे हैं...अगर नौकरी सिर्फ़ आप द्वारा बताये कारणों से ही मिलती है तो लानत भेजिए उस पर और फ़िर भी खुश रहिये.
नीरज